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अब क्या कहेँ ?
चोर ही पुलिस,
पुलिस ही चोर,
कहनेवाला चोर,
पुछनेवाला चोर,
सुनानेवाला चोर,
दिखानेवाला चोर,
लिखनेवाला चोर,
छापनेवाला चोर,
अरे.. सुनभाइ …
जनता मरे तो मरे ..
अपनी जेब कौन भरें ?
महंगाइकी चक्कीमें जनताको इतना पीसो के,
जिंदा रहकरभी कुछ बोल ना सके।
कोइ तो सुनो … जनता क्या सुनना चाहती है ?
कोइ तो देखो… जनता क्या देखना चाहती है ?
कोइ तो लिखो … जनता क्या पढना चाहती है ?
कोइ तो छापो … जनता क्या सोचना चाहती है ?
जीस देसकी संस्कृतिमे है महाभारत और रामायन,
दिखते है चारों ओर रावण, दुशासन और दुर्योधन;
कहां है दो चार अर्जुन, अभिमन्यु या हनुमान ?
कोन्डोम लगानेसे कुछ नहीं होगा,
खौलते हुए खुनसे,
तपते हुए विचारसे,
संस्कारोसे सुशोभीत कामक्रिडाके विग्यानमें,
समजदारीसे जब बनेगा .. विर्य शक्तिशालि,
तब पैदा होंगे … अर्जुन, अभिमन्यु या हनुमान ।
आपसे नहीं है मेरा सवाल … के आपने क्या कीया ?
मेरे अपने भारत देशके लिये,
मेरे अपने देशके सभी बांधवोके लिये न सही,
लेकिन … कमसे कम … मेरे देशके,
मेरे गांवके कुछ बच्चोके लिये,
मैने मेरा शेष जीवन समर्पित कीया है,
क्योंकी मैं मानता हुं,
देशके बच्चे और युवाशक्ति ही देशका भावि है।
क्योंकी मै चाहता हुं,
आज हमारे सामने नये रूपमे है रावण, दुशासन और दुर्योधन;
उनका वध करनेकी हर बच्चेमें हिम्मत हो।
याद रखो,
केवल जय हो कहनेसे कुछ नहीं होगा ।
आइए दोस्तो,
बाते जरुर करें, लेकिन काम ज्यादा करें।
जीवनको बहेतर बनाये।
अखिल सुतरीआ । 31.03.2009 । 09427222777 | 3949