. दिमागने सोचा, दिलने महसुस कीया … हिन्दुस्तानके आम आदमीके जीवनमें क्या होता है ? उसकी जरूरते क्या होती है ? उन जरूरतोंको हांसिल करनेके लिये उसे कीतने पापड बेलने पडते है ? कीन जरूरतोंकी किमत उसकी कमर तोड देती है ? कीन जरूरतोंको महंगाइके कारण चाहते हुए भी खरीद नहि पाते है ? क्या वह हर कदम पर कठीनाइओका और चुनौतीओका सामना कर पाता है ? अपने परिवारकी सुरक्षा और बच्चोकी परवरीश अपनी सोचके मुताबीक कर पाता है ? अपनी आमदानीमें महिने या साल भरका गुजारा कर पाता है ? सही चित्र क्या है ? १५ मीनीट अवधीकी एक फिल्म इन सवालोके उत्तर पानेके लिये बनायी जा रही है। फिल्मकी कहानी बडे शहरसे छोटेसे छोटा गांवमें बसने वाले आम आदमीकी जीवनी पर आधारीत होगी। समाजके हर टपकेसे आम आदमीको चुना जायेगा। यह फिल्म मुख्य मंत्री, प्रधान मंत्री, वित्त मंत्री और देशके प्रमुखको भेजी जा सकती है। 125 करोडकी आबादीवाले हमारे देशमें आम आदमी इतनी जल्दी महंगाइके सामने अपने घूटने नहि टेकेगा। आम आदमीसे पूछा जा सके एसे सवाल यदी आपके मनमें उपस्थित हो रहे हो तो हमें जरूर बताइएगा। हिन्दी भाषामें बनने वाली यह फिल्मके लिये क्षमता रखनेवाले देशवासीओसे आर्थिक सहयोगकी उन्मीद जरूर है। महंगाइके सामने लडनेका कोइ तो तरीका होगा ? निमंत्रण है हमारा आपको, दिमागकी बात दिलसे करने के लिये … अखिल सुतरीआ 09427 222 777 |
दिमागने सोचा, दिलने महसुस कीया …
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गुलमोहर का फूल
कली बेंच देगें चमन बेंच देगें,
धरा बेंच देगें गगन बेंच देगें,
कलम के पुजारी अगर सो गये तो
ये धन के पुजारी वतन बेंच देगें।
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