युवा संबंधो के मामले समझना मुश्किल है।
एक लडका और एक लडकी …
शायद एक स्मित से संबंध की शुरुआत होती है ।
समय के साथ संबंध बढता है ।
इस संबंध को नाम मिलता है ..
मित्र का ।
पहले तो उसमे केवल दोस्ती पलती है ।
दोस्ती प्यार मे कब पलटती है ..
कीसीको पता ही नहि चलता ।
प्यार .. प्रेम को पहचान पाना बडा ही मुश्किल है ।
क्युकी वह एक अदभुत एहसास है।
इस संबंध को जब तक नाम नहि मिल जाता रीश्ता बन नहि पाता ।
सामाजिक और पारिवारीक
रीश्तो से अलग …
अलग अलग – भीन्न परंपराओ मे
परवरिश पा कर …
एक दुजे का जीवन भर
साथ निभाने वाला रीश्ता ..
साथ निभाने वाला संबंध ..
सबसे कठीन रीश्ता
पति और पत्नि का ।
शादी करके पति पत्नि बनने के लिये …
लडकेका फैसला ..
लडकीका फैसला ..
शादी कराने लडकेके मातापिताका फैसला ..
शादी कराने लडकीके मातापिताका फैसला ..
पर हावी होते हुए
बिरादरी के लोगोकी
मान्यताए और रीती रिवाज …
के कारण कुछ संबंध
बनने से पहले ही दम तोड देते है ।
जीनको कोई लेना देना नहि होता
उनके फैसले माने जाते है …
जीनकी जिन्दगी है …
जीनको प्यारदुलार से बडा कीया
उनको पूछा तक नहि जाता के
वे क्या सोचते है …. क्या चाहते है ।
माना के बच्चे .. बच्चे है
और बुझुर्ग .. बुझुर्ग।
लेकिन याद रहे …
बच्चे जब बुझुर्ग बनेंगे तब
बुझुर्ग शायद दूनियासे चले गये हो ।
क्युं बुझुर्ग अपने ही बच्चो की
बडी खुशी के साथ
जूडे हुए फैसले करते समय
अपना बचपन भूल जाते है ?
शायद …. इसीलिये
युवा संबंधो के मामले समझना मुश्किल है । |